16-05-73  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

अन्तिम पुरूषार्थ

मूर्च्छित को सुरजीत करने वाले, सर्व को सहयोग देने वाले, मनुष्यात्माओं को देव-आत्मा बनाने वाले, सर्वशक्तिमान् बाबा बोले:-

सर्वशक्तियों से सम्पन्न-मूर्त्त क्या स्वयं को अनुभव करते हो? बापदादा द्वारा इस श्रेष्ठ जन्म का वर्सा क्या प्राप्त हो गया है? वर्से के अधिकारी अर्थात् सर्वशक्तियों के अधिकारी बनना, सर्वशक्तियों के अधिकारी अर्थात् मास्टर सर्वशक्तिवान् बने हो? मास्टर सर्वशक्तिवान् बनने से जो प्राप्ति स्वरूप अनुभव करते हो क्या उसी अनुभव में निरन्तर स्थित रहते हो वा इसमें अन्तर रहता है? वर्से के अधिकारी बनने में सिर्फ जो दो बातें बुद्धि में रखने से अन्तर समाप्त हो निरन्तर वह स्थिति बना सकते हो वे दो शब्द कौन-से हैं? वह जानते भी हो, और कर भी रहे हो, लेकिन निरन्तर नहीं करते हो? एक है स्मृति को यथार्थ बनाने का, दूसरा है कर्म को श्रेष्ठ बनाने का। वे दो शब्द कौन-से हैं? एक है स्मृति को पॉवरफुल  बनाने के लिये सदा कनेक्शन (Connection) और कर्म को श्रेष्ठ बनाने के लिए सदा अपनी करेक्शन (Correction) चाहिए। करेक्शन हर कर्म में न होने के कारण मास्टर सर्वशक्तिवान् वा ऑलमाईटी अथॉरिटी की स्टेज (Stage) पर निरन्तर स्थित नहीं हो पाते हो। यह दोनों शब्द कितने सरल हैं। यहाँ आए भी इसलिए हो ना? जिस कर्त्तव्य के लिए आए हो उसको करना मुश्किल होता है क्या?

मुश्किल किसको अनुभव होता है? जो कमजोर होते हैं। वे मुश्किल अनुभव क्यों करते हैं? कनेक्शन जुटे हुए भी कभी-कभी मुश्किल अनुभव करते हैं। वह इसलिए मुश्किल अनुभव होता है, क्योंकि मेहनत नहीं करते। जानते भी हैं, समझते भी हैं, चलते भी हैं लेकिन चलते-चलते फिर विश्रामपसन्द हो जाते हो। बापदादा के पसन्द नहीं, लेकिन आराम पसन्द। इसलिए जानते हुए भी ऐसी स्थिति बन जाती है। तो बाप-समान श्रेष्ठ कर्म करने में आराम-पसन्दी श्रेष्ठ स्थिति को नहीं पा सकते। इसलिए हर संकल्प और हर कर्म की करेक्शन करो। और बापदादा के कर्मों से कनेक्शन जोड़ो फिर देखो कि बाप-समान हैं? अभी आप श्रेष्ठ आत्माओं का लास्ट  पुरूषार्थ कौन-सा रह गया है? लास्ट स्टेज के लास्ट पेपर के क्वेश्चन को जानते हो? जानने वाला तो ज़रूर पास होगा ना? आप सभी फाईनल (Final) परीक्षा के लास्ट क्वेश्चन को जानते हो? आप का लास्ट क्वेश्चन आपके भक्तों को भी पता है। वह भी वर्णन करते हैं। आपको भक्त जानते हैं और आप नहीं जानते हो? भक्त आप लोगों से होशियार हो गए हैं क्या?

आज श्रेष्ठ आत्माओं के कल्प पहले की रिजल्ट का भक्तों को मालूम है और आप लोगों को अपने वर्तमान पुरूषार्थ के फाईनल स्टेज भूल गई है। वह लास्ट स्टेज बार-बार सुनते हो। गायन भी करते हैं। गीता के भगवान् के द्वारा गीता-ज्ञान सुनने के बाद फाईनल स्टेज कौन-सी वर्णन करते हो? (नष्टोमोहा.....स्मृतिर्लब्धा) भक्त आपकी स्टेज का वर्णन तो करते हैं ना? तो लास्ट पेपर का क्वेश्चन कौन-सा है? स्मृति स्वरूप किस स्टेज तक बने हो और नष्टोमोह: कहाँ तक बने हो?-यही है लास्ट क्वेश्चन। इस लास्ट क्वेश्चन को पूर्ण रीति से प्रैक्टिकल में करने के लिए यही दो शब्द प्रैक्टिकल में लाने हैं। अभी तो सभी पास विद् ऑनर बन जायेंगे ना? जबकि फाईनल रिजल्ट से पहले ही क्वेश्चन एनाउन्स (Announce) हो रहा है। फिर भी 108 ही निकलेंगे। इतना मुश्किल है क्या? पहले दिन से यह क्वेश्चन मिलता है। जिस दिन जन्म लिया उस दिन ही लास्ट क्वेश्चन सुनाया जाता है।

अभी आप लोग जो श्रेष्ठ आत्माएं बैठे हो वह तो पास होने वाले हो ना? सुनाया था कि पास होने के लिये इस ‘पास’ शब्द को दूसरे अर्थ से प्रैक्टिकल में लाओ। जो कुछ हुआ वह पास हो गया। जो बीत चुका उसको अगर पास समझ कर चलते चलो तो क्या पास नहीं होंगे? इसी पास शब्द को हिन्दी भाषा में प्रयोग करो तो पास अर्थात् साथ। बापदादा के पास हैं। तो इस एक शब्द को तीनों ही रूप से स्मृति में रखो। पास हो गया, पास रहना है और पास होना है। तो रिजल्ट क्या निकलेगी? संगठन की यादगार जो विजय माला के रूप में गाई हुई है उसी विजय माला के मणके अवश्य बन जायेंगे। अगर बापदादा बच्चों को सदैव अपने पास रहने का निमन्त्रण देते हैं, अपने साथ हर चरित्र अनुभव कराने का निमन्त्रण देते हैं तो ऐसा श्रेष्ठ निमन्त्रण स्वीकार नहीं करते हो क्या? सारे कल्प के अन्दर आत्माओं को श्रेष्ठ आत्मा द्वारा वा साधारण आत्मा द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार के निमन्त्रण मिलते रहे लेकिन यह निमन्त्रण अभी नहीं तो कभी नहीं। निमन्त्रण को स्वीकार करना अर्थात् अपने आपको बाप के पास रखना। यह क्या मुश्किल है? निमन्त्रण पर सिर्फ स्वयं को पहुँचना होता है। बाकी सभी निमन्त्रण देने वाले की जिम्मेवारी है। तो अपने आप को बाप के पास ले जाना अर्थात् बुद्धि से बाप के पास रहना इसमें क्या मेहनत है? अगर आज की दुनिया में किसी साधारण व्यक्ति को प्रेजीडेन्ट निमन्त्रण दे कि आज से तुम मेरे साथ रहना तो क्या करेंगे? (साहस नहीं रखेंगे) अगर वह साहस दिलाये तो क्या करेंगे? क्या देरी वरेंगे? तो बाप के निमन्त्रण को सदा स्वीकार क्यों नहीं करते हो? कोई रस्सियाँ हैं जो कि खींचती हैं? बच्चे पॉवरफुल हैं या बाप? पॉवरफुल से पॉवरफुल कौन? कौन कितना भी पॉवरफुल हो, लेकिन उससे प्राप्ति क्या? प्राप्ति के अनुभवी स्वरूप के आधार पर उस आकर्षण में आकर्षित होना क्या ब्राह्मण आत्माओं के लिए शोभता है? ब्राह्मण आत्माओं के लिए वा श्रेष्ठ आत्माओं के लिए प्रभावशाली माया भी किस रूप में दिखाई देती है? कागज़ का शेर अनुभव होता है? जो समझते हैं वह प्रभावशाली माया हमारे लिए कागज़ अर्थात् खिलौना है वह अपना हाथ उठावें।

क्या माया को कागज़ का शेर नहीं बनाया है? क्या वह बेजान नहीं है? जो स्वयं डेकोरेशन को लगाते हैं वे तो डरेंगे नहीं, लेकिन दूसरे डर सकते हैं। अभी उसमें जान है क्या? कभी-कभी जानवाली बन जाती है क्या? अभी उनको मूर्छित नहीं किया है? मूर्छित हो गई है कि अभी वह जिन्दा है। मूर्छित किया है? आप के लिये मर चुकी है? किस स्टेज तक है? मर चुकी है, जल गई है या मूर्छित है? तीन स्टेजिस हैं। कोई के लिए मूर्छित रूप में है, कोई के लिए मर चुकी है और कोई के लिए जल भी गई है अर्थात् नाम निशान नहीं रहा है। तो हर एक अपने को देखे कि किस स्टेज तक पहुँचे हैं? मूर्छित करने के बजाय स्वयं तो मूर्छित नहीं हो जाते हैं? सदा संजीवनी बूटी साथ है तो कभी भी मूर्छित नहीं हो सकते। मूर्छित करने वाले कभी मूर्छित नहीं होते। ब्राह्मण जन्म का कर्त्तव्य ही यह है। जन्म लेने से पहले प्रतिज्ञा क्या की थी? यही प्रतिज्ञा की थी ना कि माया जीत जगतजीत बनेंगे। यह तो जन्म का ही कर्त्तव्य है। जो जन्म से कर्त्तव्य करते आये हो वह क्या मुश्किल होता है? अच्छा।

सदा सुरजीत रहने वाले, सदा सर्वशक्तियों से सम्पन्न रहने वाले, सदा बापदादा के साथ रहने वाले, सदा बाप के कर्त्तव्य में हाथ बढ़ाने वाले, सदा सहयोगी, सदा विजयी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते!

पार्टी के साथ

बापदादा के लिये गुलदस्ता पार्टी है। उसमें देखना है कि मैं कौन-सा फूल हूँ, गुलाब हूँ या चमेली हूँ? हर एक की विशेषता को तो आप जानते हो ना? कमल और गुलाब में क्या अन्तर है? कमल का पुष्प कमाल करने में प्रवीण। अनुभव करने में गुलाब का फूल है। यहाँ बापदादा स्वयं ही फूलों में सर्व विशेषताए  भर रहे हैं। साइंस (साइंस) वाले भी एक में कई चीजें पैदा करते हैं ना? यह कहाँ से सीखा? यहाँ एक-एक में अनेक प्रकार के फूलों का रस भरना। जो गायन है ‘तुम्हारी गत-मत तुम्हीं जानो’ क्या से क्या बना देना यही गत है ना? एक-एक में सब रस भर देना, सर्व-पुष्पों की जो भी विशेषताये हैं उनमें सर्व पुष्पों की विशेषता भरना है तभी तो कहा जाता है- सर्वगुण सम्पन्न, सर्व रसना सम्पन्न, न कि चौदह कला। सर्व-पुष्पों की रसना समान सम्पन्न बनना यही बाप को प्यारा लगता है। बागवान भी बगीचे को देख हर्षित होते हैं। जहाँ देखो, जो सुनो, और जो बोलो उसमें विशेषता। अपने में हर बात की विशेषता भरो। जब हर बात में विशेषता भरेंगे तो क्या बन जायेंगे? विशेष आत्मा कभी कीचड़ में नहीं फँसती। सदैव हर्षित रहती है। निश्चय बुद्धि के एक-एक बात में निश्चय होना चाहिए। चतुर बाप की सन्तान हैं। जो बहु रूपी बनना जानता है वह हर बात में सफलता-मूर्त्त होगा। अच्छा।